फूलों की घाटी (यात्रा-वृतांत) भाग-4

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फूलों की घाटी यात्रा का आज अंतिम दिन था और छुट्टी का भी। 24 घंटे में दिल्ली पहुंच जाना है ताकि समय से काम पर लौट सकूं। गोविंदघाट से दिल्ली बहुत दूर तो नहीं है, यही कोई साढे पांच सौ या पौने छह सौ किलोमीटर है। 24 घंटे में तो आसानी से पहुंच सकते हैं। लेकिन एक तो आधे से ज्यादा पहाङी रास्ता और उपर से मैं अब व्हीकल को धीरे भी चलाने लगा हूं, 70 की स्पीड भी तब पकङता हूं जब कोई इमरजेंसी आ जाये। फिर भी उम्मीद है कि आज सवेरे सवेरे निकल कर लगातार चलते हुये कल सवेरे तक घर पहुंच ही जाउंगा।

जब चलने से पहले गाङी साफ कर रहा था तो कल शाम की एक बात याद आ गई, जब हम जीप में बैठ कर पुलना से लौट रहे थे। ड्राईवर जोकि स्थानीय ही था, ने बताया था कि इस साल सर्दियों में हेमकुंड साहिब के लंगर भवन में एक मादा भालू ने अपने बच्चों को जन्म दे दिया। यह कोई अचंभे की बात नहीं है क्योंकि सर्दियों-भर हेमकुंड बंद रहता है। जबरदस्त बर्फ़बारी होती है और कोई भी जाङों में उधर नहीं जाता। हिमालय के जंगलों में भालू तो रहते ही हैं, इधर भी हैं। तो एक मादा भालू ने ठंड से अपने नवजात को बचाने के लिये लंगर भवन को सुरक्षित ठिकाना समझ लिया। यहां तक तो ठीक था पर गङबङ तब हुई जब हेमकुंड के खुलने का समय नज़दीक आने लगा। भालू वाली बात की जानकारी नीचे किसी को नहीं थी और एक आदमी सीज़न खुलने से कुछ पहले अकेले वहां जा पहुंचा। जैसे ही लंगर भवन में दाखिल हुआ तो सीधा सामना भालू से हो गया। भालू ने उसे देखते ही उस पर हमला कर दिया। अब अगर आपको मालूम ना हो तो सुनिये कि भालू हमला भी हल्का-फुल्का नहीं करते हैं। हिमालयी भालू और लंगूर सबसे पहले चेहरे पर हमला करते हैं और अपने नुकीले नाखुनों से शिकार को बुरी तरह नोंच डालते हैं। जब वह भालू उस आदमी को नोंच रहा था तो किस्मत से एक नेपाली भी वहां आ पहुंचा और किसी तरह हिम्मत करके उस आदमी को भालू के शिकंजे से छुङवाया। हालांकि उस अभागे आदमी को किसी तरह बचा लिया गया लेकिन वह हादसा उसे न केवल जिस्मानी बल्कि जेहनी तौर पर भी बुरी तरह तोङ गया। वन्य जीवों के इलाकों का हम जो हर जगह पर अतिक्रमण करते जा रहे हैं ये उसी का परिणाम है कि इस तरह की घटनायें लगातार सुनने में आ रही हैं। जंगली जानवरों और मनुष्यों का रिश्ता लगातार बिगङ रहा है। हालांकि अपवाद के रूप में गुज़रात में गिर के शेरों और मनुष्यों ने बहुत हद तक आपस में सामंजस्य बिठा लिया है पर उनके क्षेत्र में भी दख़लअंदाज़ी तो हो ही चुकी है।

खै़र गाङी की सफाई के बाद सुबह सात बजे हम वापसी की राह पकङ लिये। एक बार चलने के बाद दोपहर को रूके रूद्रप्रयाग से पहले एक गुरूद्वारे में। यहां भोजन किया और फिर चल दिये। एक बार फिर से देवप्रयाग के पास भू-स्खलन के कारण रूकना पङा, हालांकि अब की बार अधिक देर नहीं रूकना पङा वरना जाने के समय तो दो घंटे खराब हो गये थे। ऋषिकेश पहुंचने तक बाजार रंग-बिरंगी रोशनीयों से सराबोर हो चुके थे। रूङकी से निकल कर भोजन के लिये रूके। आधे घंटे बाद फिर चल दिये और सवेरा होते होते कूचा-ए-दिल्ली जान में दस्तक दे दी।
Hemkund Sahib Public Addressal
गोविंद घाट गुरूद्वारे में लगा सूचना पट्ट।

Alaknanda River Valley
गोविंद घाट गुरूद्वारे के पीछे अलकनंदा।
Bridge connecting Govind Ghat to Pulna
गोविंद घाट को पुलना गांव से जोङने के लिये मोटरेबल पुल।
Confluence of Alaknanda and Dhauliganga
विष्णु प्रयाग संगम (बायें बद्रीनाथ से आती अलकनंदा और दायें धौलीगंगा नदी, जो यहां से अस्सी किलोमीटर पीछे नीती घाटी से आती है।)
Waterfall at Vishnuprayag
खुल जा सिम-सिम वॉटर-फॉल ; ) (जे.पी. हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट, विष्णु प्रयाग)
pomegranate tree
और ये चखिये ताज़े रसीले अनार।
fresh pomegranate
लाल लाल मीठे अनार।
Joshimath Alaknanda Valley
बादलों से भरी अलकनंदा नदी की घाटी, जोशीमठ।
Road Signboard at Joshimath
Near Shivpuri
शिवपुरी से पहले।


1100+ किलोमीटर की दुर्गम सड़क ड्राईविंग, 40 किलोमीटर की जबरदस्त चढाईयों से भरपूर ट्रेकिंग। ये आसान नहीं होता है जब आपके हाथ में केवल चार दिन ही हों।  यह यात्रा इसलिये भी यादग़ार रहेगी कि इस लक्ष्य को मैंने तब हासिल किया जब दायां हाथ पैरालाईज होने के कगार पर पहुंच गया था और लेट कर सोना अंसभव हो रहा था।

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